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यूपी के बरेली में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान ने सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया

यूपी के बरेली में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान ने सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया

उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान केंद्र संस्थान के माध्यम से सरोगेसी तकनीक का सफल परीक्षण किया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा है, कि सरोगेसी तकनीक के माध्यम से फिलहाल 26 बछड़ों का प्रजनन हो गया है। अब केवल इंसान ही नहीं गायें भी सरोगेसी तकनीक के माध्यम से बछड़े को जन्म देंगी। इसका सफलता पूर्ण परीक्षण उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में मौजूद भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में किया जा चुका है। बताया जा रहा है, कि फिलहाल इंसानों के जैसे ही गायों से भी सरोगेसी तकनीक के माध्यम से बेहतरीन नस्ल के बछड़े प्राप्त किए जाएंगे। संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया है, कि सरोगेसी तकनीक के जरिए वैज्ञानिक अच्छी नस्ल के सांड के वीर्य को एकत्रित कर लेते हैं। उसके बाद में चयन की गई नस्ल के अंडे लेकर के भ्रूण तैयार किया जाता है। उसके बाद में भ्रूण को गाय के अंदर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके परिणाम स्वरुप गाय अच्छी नस्ल के बछड़े को पैदा करती है। जो गाय काफी अधिक मात्रा में दूध देती है।

सरोगेसी तकनीक का क्या फायदा होता है

सरोगेसी तकनीक का उपयोग करके एक अच्छी दुधारू नस्ल की गाय को जन्म दिया जा सकता है। जिससे दूध की आपूर्ति सुनिश्चित होने के साथ-साथ पशुपालकों एवं किसान भाइयों की आमदनी भी काफी बढ़ेगी। इस तकनीक के माध्यम से गायों के जन्म लेने से पशुपालकों को काफी आर्थिक सहायता प्राप्त होगी। क्योंकि पशुपालकों को अच्छी दूध देने वाली गायों की सहायता से मोटी कमाई हो जाती है। सरोगेसी तकनीक से प्राप्त हुए पशुओं से पशुपालकों को काफी मात्रा में दूध प्राप्त हुआ है।

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सड़क पर निराश्रित पशुओं की भी तादात में होगी कमी

आपको बतादें कि गायों को सड़कों पर छुट्टा छोड़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है, कि जब तक वह दूध देती हैं, तब तक उनका पालन पोषण किया जाता है। जब गायें दूध देना बंद कर देती हैं, तो उनको निर्ममता से खुला छोड़ दिया जाता है। आवारा पशुओं की वजह से आए दिन सड़क हादसों के बारे में भी सुनने को मिलता है। किसानों की फसल को भी निराश्रित पशु काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में सरोगेसी तकनीक अच्छी और दुधारू नस्ल की गायों को तैयार करके दूध की मात्रा को बढ़ाएगी। जब पशुपालकों को दूध अधिक मात्रा में मिलेगा तो उनके पास पशुओं को छुट्टा छोड़ने का कोई मूलभूत कारण ही नहीं बचेगा।
सरोगेसी तकनीक का हुआ सफल परीक्षण, अब इस तकनीक की सहायता से गाय देगी बछिया को जन्म

सरोगेसी तकनीक का हुआ सफल परीक्षण, अब इस तकनीक की सहायता से गाय देगी बछिया को जन्म

किसान भाई देश में खेती किसानी के साथ पशुपालन का कार्य भी करते हैं जिससे किसान अपने लिए अतिरिक्त आमदनी जुटा पाते हैं। देश में ज्यादातर किसान दुधारू पशुओं को पालना पसंद करते है ताकि दुग्ध का उत्पादन करके ज्यादा के ज्यादा कमाई की जा सके। इसके अलावा किसान भाई मुर्गी, बतख और सूअर पालन भी करते हैं। इन दिनों देश में जानवरों की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए तेजी से प्रजनन की जरूरत बढ़ी है ताकि जानवरों की बढ़ती हुई मांग को पूरा किया जा सके।

सरोगेसी तकनीक का गायों में सफल परीक्षण

इसी को देखते हुए भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इंसानों के बाद अब
सरोगेसी तकनीक का गायों में सफल परीक्षण किया है। इसकी मदद से अब गायें भी बछिया को जन्म दे सकेंगी। जिससे भविष्य में गायों की संख्या बढ़ेगी और बढ़ती हुई दूध की मांग की आपूर्ति की जा सकेगी। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस तकनीक का सफल परीक्षण किया जा चुका है। इस परीक्षण के दौरान अभी तक 26 बछड़े प्राप्त किया जा चुके हैं। वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस तकनीक के अंतर्गत अच्छी नस्ल के सांड के वीर्य को एकत्र कर लिया जाता है। इसके बाद चुनी हुई नस्ल के अंडे लेकर भ्रूण तैयार किया जाता है, उसके बाद भ्रूण को गाय में प्रत्यारोपित किया जाता है। जिससे गाय एक बेहतर नस्ल के बछिया को जन्म देती है। जिससे भविष्य में ज्यादा मात्रा में दूध प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस सफल प्रयोग के बाद इसे अब धरातल में उतारा जाएगा ताकि किसान भाई इससे ज्यादा से ज़्यादा लाभान्वित हो पाएं। इससे बहुत जल्दी भारत में बढ़ती हुई दूध की मांग की आपूर्ति की जा सकेगी। इसका लाभ सबसे पहले उत्तर प्रदेश के किसान उठा पाएंगे, इसके बाद इस तकनीक को धीरे-धीरे पूरे देश में फैलाया जाएगा।

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दुग्ध प्रसंस्करण एवं चारा संयंत्रों को बड़ी छूट देगी सरकार
इन दिनों केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें देश में दूध उत्पादन पर तेजी के फोकस कर रही हैं ताकि बाजार में बढ़ी हुई मांग की आपूर्ति की जा सके। इसके लिए बाजार में कई डेयरी कंपनियां आ गई है। जो दुग्ध प्रसंस्करण का काम करती हैं। ऐसी स्थिति में यदि किसान भाई दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में सफल हो पाते है तो निश्चित रूप से यह किसानों के लिए फायदे का सौदा होगा और भविष्य में किसानों की आय तेजी से बढ़ती हुई दिखाई देगी।
IIT कानपुर ने 5 हजार फीट ऊँचे बादलों पर केमिकल गिराकर की बारिश

IIT कानपुर ने 5 हजार फीट ऊँचे बादलों पर केमिकल गिराकर की बारिश

जानकारी के लिए बतादें कि आईआईटी कानपुर 2017 से इस प्रॉजेक्ट पर कार्यरत रहा है। परंतु, बहुत सालों से डीजीसीए से अनुमति ना मिलने पर मामला लंबित था। संपूर्ण तैयारियों के पश्चात विगत दिनों डीजीसीए ने टेस्ट फ्लाइट की मंजूरी दे दी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के छात्रों द्वारा नवीन कीर्तिमान स्‍थापित किया है। दीर्घ काल से क्‍लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के माध्यम से बारिश कराने की कोशिश में लगे कानपुर आईआईटी के छात्रों के हाथ बड़ी सफलता लगी है। यहां के छात्रों ने 5 हजार फीट की ऊंचाई से बादलों पर केमिकल गिराकर बारिश कराने में सफल हुए हैं। इस परीक्षण से कृत्रिम वर्षा कराने की आशा लगी है।

काफी समय से परीक्षण चल रहा था

आईआईटी कानपुर 2017 से इस प्रॉजेक्ट पर कार्य कर रहा है। परंतु, विगत काफी सालों से डीजीसीए से स्वीकृति मिलने पर मामला बाधित था। समस्त तैयारियों के पश्चात विगत दिनों डीजीसीए ने टेस्ट फ्लाइट की स्वीकृति दे दी है। उत्तर प्रदेश सरकार विगत दोनों पूर्व क्लाउड सीडिंग के परीक्षण की अनुमति दे दी थी।

इस तरह परीक्षण किया गया

जानकारी के अनुसार, आईआईटी की हवाई पट्टी से उड़े सेसना एयरक्राफ्ट ने 5 हजार फीट की ऊंचाई पर घने बादलों के मध्य दानेदार केमिकल पाउडर फायर किया। यह सब कुछ बिल्कुल आईआईटी के ऊपर ही किया गया था। केमिकल फायर करने के पश्चात तुरंत बारिश शुरू हो गई। जानकारों का कहना है, कि क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के लिए सर्टिफिकेशन नियामक एजेंसी डीजीसीए ही देता है।  इस सफल परीक्षण फ्लाइट के परिणामों का आकलन करने के पश्चात निर्धारित किया जाएगा कि आगे और टेस्ट किए जाए अथवा नहीं। इस दौरान आईआईटी व उसके आसपास तीव्र बारिश हुई। यह भी पढ़ें: नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

सूखा जैसे हालातों से जूझा जा सकता है

क्‍लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) में बारिश की संभावना को बढ़ाने के मकसद से विभिन्‍न रासायनों जैसे कि सिल्‍वर, आयोडाइड, सूखी बर्फ, नमक एवं अन्‍य तत्‍वों को शम्मिलित किया गया है। आईआईडी कानपुर के इस परीक्षण में सेना के विमान का उपयोग किया गया था। कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर का कहना है, कि क्‍लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) परीक्षा सफल रहा है। इससे आगामी समय में वायु प्रदूषण एवं सूखा जैसे हालातों से निपटा जा सकेगा। कृत्रिम बारिश से आम लोगों को काफी सहूलियत मिल पाएगी। किसानों की फसलों का बचाव किया जा सकेगा।